पढ़ना नहीं जानती फिर भी चाट जाती हैं दीमकें जाने कैसे सारी किताबों को,
रौशनी क्या है नहीं जानते फिर भी कर देते हैं जाने कैसे रौशन जुगनू सारे ज़माने को,
नहीं जानते जिद्दी हवाओं को फिर भी रख लेते हैं ना जाने कैसे परिंदे साथ हवाओं को,
उड़ना नहीं जानते फिर भी छू लेते हैं जाने कैसे कुछ लोग ऊँचे आसमानो को॥
राही(अंजाना)