अधर्म का हो खत्म राज
धर्म को विजय मिले,
धनुष उठाएं रामचंद्र
विश्व को निर्भय मिले।
दैत्य दम्भ खत्म हो
अहं की बात दूर हो,
घमण्ड भूमि पर गिरे,
बचे जो बेकसूर हो।
अशिष्टता समाप्त हो
अभद्र बात बन्द हो,
असंत सच की राह लें,
कदर मिले जो संत हो।
राम शर उसे लगे
गरल हो जिसकी जीभ पर,
वर्तमान शुद्ध हो व
गर्व हो अतीत पर।
रोग व्याधियां न हों
समस्त विश्व स्वस्थ हो,
हरेक तन व मन सहित
प्रकृति साफ स्वच्छ हो।
संतान हो तो इस तरह की
मातृ-पितृ भक्त हो,
सम्मान, प्रेम, त्याग की
भी भावना सशक्त हो।
धनुष उठायें रामचंद्र,
विश्व को निर्भय मिले,
अधर्म का हो खत्म राज,
धर्म को विजय मिले।
——– डॉ0सतीश चंद्र पाण्डेय
चम्पावत, उत्तराखंड।