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धरती-पुत्र

मूसलाधार बारिश से जब,
बर्बाद हुई फ़सल किसान की
बदहाली मत पूछो उसकी,
बहुत बुरी हालत है भगवन्,
धरती-पुत्र महान की।
भ्रष्टाचार खूब फैल रहा,
काले धन की भी चिंता है।
मगर किसी को क्यों नहीं होती,
चिंता खेतों और खलिहान की।
अपनी फ़सलों की फ़िक्र लेकर,
हल ढूंढने निकला है हलधर
लेकिन सबको फ़िक्र लगी है,
अपने ही अभिमान की।
मूसलाधार बारिश से जब,
बर्बाद हुई फ़सल किसान की
बदहाली मत पूछो उसकी,
बहुत बुरी हालत है भगवन्,
धरती-पुत्र महान की।
भरे पेट जो सभी जनों का,
माटी से फ़सल उगाता है।
क्यों नहीं करते हो तुम चिंता,
उसके भी सम्मान की।
संपूर्ण नहीं है कोई देश,
बिन गांव और किसान के
अफ़सोस, अन्नदाता ही फांसी खाता,
कुछ चिंता कुछ फ़िक्र करो,
धरती-पुत्र की जान की।
मूसलाधार बारिश से जब,
बर्बाद हुई फ़सल किसान की
बदहाली मत पूछो उसकी,
बहुत बुरी हालत है भगवन्,
धरती-पुत्र महान की।।
____✍️गीता

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