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नाटक के किरदार अनेकों

नाटक के किरदार
अनेकों रूप-रंग के हैं
अलग अलग मुखौटे पहने
अलग ढंग के हैं।
जीवन में मिल जाते हैं
हम भी घुल मिल जाते हैं,
कभी पहचान कर लेते हैं
कभी धोखा खा जाते हैं।
कभी गिराने का
कभी मिटाने का
कभी हिलाने का भीतर तक
मौका पा जाते हैं।
आखों में लाकर नमी सी,
मन में आस जगाते हैं,
बाहर से ठंडाई सी ला
भीतर आगे लगाते हैं।
संपदा और धन के मद में
बौरा कर चलते हैं,
निर्धन की निर्जीव समझते
मद में ही रहते हैं।
खुद को मानवता का सेवक
कहते नहीं थकते हैं,
लेकिन मानवता को
पीड़ा देते रहते हैं।

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