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न घड़ी एक भी गँवानी है

नींद पलकों में भरी
स्वप्न आंखों में सजे
आज आलस्य त्याग
और कल मिलेंगे मजे।
आज है काली निशा
तारे तक खो गए हैं
ठोस चट्टान भी
देख यह रो गए हैं।
ये हवा चल रही है,
मगर है दूषित सी
श्वास लेना है कठिन
आस है अपूरित सी।
आस पूरित हो
खूब मेहनत कर,
न घड़ी एक भी गँवानी है।
है कठिन यह समय
मगर तूने
राह मंजिल की
अपनी पानी है।

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