पटरी पर फिर लौटा जीवन,
पर पहले जैसी बात नहीं है।
मुंह ढ़ककर घूमे हैं दिनभर,
पहले जैसी रात नहीं है।
हॉल, मॉल सब बंद पड़े हैं,
विद्यालयों पर लगे हैं ताले।
रौनक गुम है बाज़ारों से,
सूने पड़े हैं गलिहारे।
त्राहि – त्राहि हो रही धरा पर,
कोई ” संकटमोचन”, संजीवनी लाके बचाले।।