Site icon Saavan

पलाश के फूल

पलाश के फूल
——————-
लाल बिछौना बनी बनस्थली
जब अग्निदेव उतर आए।
अपना अदभुत रूप दिखाने,
पलाश के वृक्ष में आ समाए।

झड़े जहां शीतल अंगारे,
बाल चंद्रमा से छाए।
धरती को सिंदूर दिया,
बसंत का स्वागत किया।

पलाश के फूलों की बात ही निराली,
विरह में जलते प्रेमियों की व्यथा ही कह डाली।

जिस तरह प्रेमी जन का
प्रेम में जलना ही अनुराग है।
उसी तरह आधे जले, आधे खिले
पलाश के फूलों का भी प्रेमी जैसा हाल है ।

इस सदी के सुर्ख गुलाब,
पलाश तले खिलने को हैं,
प्रेम रंग में सारोबोर…
धरती, बसंत मिलने को है
——————
निमिषा सिंघल
—————–

Exit mobile version