पूँजी तेरे खेल निराले
जिसकी जेब में भर जाती है
उसका संसार बदल जाती है,
धीरे-धीरे आकर तू
मानव व्यवहार बदल जाती है।
दम्भ, दर्प, मद, गर्व आदि
संगी साथी ले आती है।
तेरे आने से मानव की
आंखों में पट्टी बंध जाती है,
सब कमतर से लगते हैं
फिर अहं भावना आ जाती है।
पूँजी तेरे खेल निराले
किसी को नहला जाती है,
लद-कद कर घर भर जाती है,
किसी को सूखा रख देती है,
भूखा ही रख देती है।
कोई मेहनत कर के भी
दो रोटी नहीं कमा पाता है
कोई बिना किये कुछ भी
खातों को भरता जाता है।
पूँजी तेरे खेल निराले
सचमुच तेरे हैं खेल निराले।