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पूर्णिमा का चांद

पूर्णिमा का चांद चमका है गगन में आज पूरा।
चाँद चमका है तो मन कैसे रहेगा खुश अधूरा।
चाँद पूरा मन भी पूरा, क्यों रहे सपना अधूरा।
लक्ष्य पर फिर से बढ़ा पग, स्वप्न को कर दूं मैं पूरा।
धीरे-धीरे बढ़ते-बढ़ते चाँद पूरा हो गया,
बाँट शीतलता सभी को, खुद की मंजिल पा गया।
किस तरह से प्यार से बढ़ते हैं यह दिखला गया,
राह अंधियारी में चलना, वह मुझे सिखला गया।

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