कहने को हम भी कहते हैं धरा को धरती माता,
है कितनी पीड़ा धरती मां को,यह कोई क्यों ना समझ पाता।
करते हम अपने कृत्यों से,धरती मां को यूं गंदा
पर्यावरण को दूषित करने में ,ना घबराता कोई बंदा
जीव जंतुओं की निर्मम हत्या कर ,फैलाते हैं गोरखधंधा
पूजते हम इन दानवों को और देते अपना कंधा
इन काले गोरखधंधो से धरती मां का सीना छलनी हो जाता।
है कितनी पीड़ा धरती मां को यह कोई क्यों ना समझ पाता।।
पहले कुंओ, बावड़ियों से हम सीमित पानी लेते थे
और आज के नए फैशन में कितना पानी यूं व्यर्थ बहा देते हैं,
हे लगे हुए घरों में