बचपन की कस्तियाँ राही अंजाना 8 years ago बहाई थीं बचपन में जो कश्तियाँ सारी, आज समन्दर में जाकर वो जहाज हो गई है, चलाई थीं सड़कों पर जो फिरकियाँ सारी, आज समय के बदलाव में गुमराह हो गई हैं, बनायी थीं रेत में खेल कर जो झोपड़ियां सारी, दुनियाँ की भीड़ में वो ख्वाब हो गई हैं॥ राही (अंजाना)