मेरा नाम बाबूजी ने,
बड़े लाड से रखा था
बेला……
मेरे जन्म पर एक
पौधा भी रोपा था,
बेला का…..
बेला के फूल की तरह,
खिलती रही, बढ़ती रही
यौवन की दहलीज चढ़ती रही,
बेला का पौधा, तो बाबूजी ने रखा
अपना घर महकाने को,
मुझे भेज दिया,ससुराल
उनका घर महकाने को,
पति के घर में, पहले-पहले,
ज्यादा मन ना लगता था
फ़िर हौले-हौले,
जब हुआ प्यार
जीवन में आने लगी बहार
दो फूल खिले जीवन में,
पहले अंश आया, फिर गुड़िया आई
घर-आंगन महक गया ,
जीवन में आने लगा निखार
बेला नाम भी लगने लगा साकार..
*****✍️गीता