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भोर

भोर होती है
हर रोज
बहुल के लिए
आशा की
एक किरण लेकर
नऐ विचार
नई ख्वाहिशें
नई चाह
नई भूख
जो होती है
पद-प्रतिष्ठा
धन- दौलत
वस्तुओं
संबंधों
को समेटने की…

बहुल के होती है भोर
बस वही प्राचीन
एक चिर-परिचित
भूख लिए
रोटी की…..

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