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मकरसंक्रांति आई

मकरसंक्रांति
अलग अंदाज लिए,
हर प्रान्त में,
अपनी छटा बिखेर रहा ।
सूर्य चले उत्तरायन हो
छटा नव आशा की
किरण बिखेर रहा ।
सकारात्मकता का संदेश लिए
अपनी संस्कृति, अपनी परिवेश
की झलक बिखर रहा ।
यह पर्व है धरती पुत्रों का
उनकी पौरूष, त्याग्, मेहनत की
अद्भुत गाथा बिखेर रहा ।
इस दिन को मनाने की परंपरा
आधुनिकता के दौर में भी
प्राचीन छवि को बिखेर रहा ।
पतंगो को धागे से जोर
थामें मन से हर रिश्ते की डोर
सभ्यता को सहेजने की, समझने की
जङ-चेतन की अहमियत बिखेर रहा ।

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