Site icon Saavan

माँ मुझे चाँद की कटोरी में

कितना नादान था वह बचपन जब…
माँ मुझे चाँद की कटोरी में
खिलाती थी…
मैं खाना खाने में नखरे
हजार दिखाती थी…
पर माँ चाँदनी रात में कटोरी
में जल भर लाती थी..
मेरी बाँहें पकड़कर
माँ मुझे गोद में बिठाती थी..
याद करती हूँ मैं कि कितना
भोला था बचपन जब माँ
मुझे
चाँद की कटोरी में खिलाती थी…
ना-ना करने पर मुझे प्यार से
मनाती थी..
उस जल भरी कटोरी में
माँ मुझे चन्द्रछाया दिखाती थी…
मैं पगली उसे चाँद समझकर
कितना खिलखिलाती थी..
कितना भोला था वो बचपन!
जब माँ मुझे चाँद की
कटोरी में खिलाती थी…
उस चन्द्रछाया को स्पर्श करते ही,
जल में हलचल मच जाती थी..
चाँद के विलुप्त होते ही मैं
कितना अधीर हो जाती थी..
माँ कहती थी मत छुओ इसे
वरना विलुप्त हो जाएगा!
फिर बोलो तुम्हारे लिए
चाँद की कटोरी कौन लाएगा?
झट से मैं माँ की बातों में
आ जाती थी…
फिर माँ हर निवाले पर सबका
नाम लेकर मुझे खिलाती
थी..
एक माँ की ही ममता है जो
चाँद को फलक से कटोरी
में ले आती थी…
और मैं पगली यूँ बचपन में
चाँद की कटोरी में खाती थी…

Exit mobile version