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मानव जनम न बेकार करो

अमृत बेला है अतिपावन।
उठो रे तू छोड़ विभावन।।
हरि का सुमिरन कर लो रे।
सैर करो तू सुबह -सबेरे।।
शीतल मंद हवा सुखदाई।
योग प्रणायाम करो रे भाई।।
तन -मन को निर्मल कर लो।
मीठी वाणी मुख से बोलो।।
कर्मशील बन रोजगार करो।
दीनन हित परोपकार करो।।
मानव जनम न बेकार करो।
‘विनयचंद’ भव पार करो।।

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