श्रीदरूप हो तुम,
मित्रपद विराजित हो
बस सदा ही खिलते रहो
मण्डली में शोभित हो।
श्रोतव्य है मीठी वाणी तुम्हारी
बिंदास चेहरे की मुस्कान न्यारी।
सदोदित रहें सारी खुशियाँ तुम्हारी,
सुस्मित रहे मन, दुख सब विलोपित हों।
संविग्न मत होना, संशय न रखना,
मित्रता निभाएंगे लोभ-मद रहित हो।