मेरी उठती सांसों की तरह
मेरी उठती सांसों की तरह
वो दबे- दबे से एहसास
कैसे उठते चले गए
वज़ूद को भेदने लगी
तेरी लफ़्ज़ों की सौगाते
कैसे सुनते चले गए
तेरे हँसने से झर रहे फूल
चाहा था चुनना मगर
कैसे बिखरते चले गए
वक़्त जो चलता साथ तेरे
न जाने किस मोड़ पर
कैसे ठहरते चले गए
तुममें छिपा वर्तमान
और तुम भविष्य की तरह
कैसे छुपते चले गए
तेरे चेहरे के बदलते रंग
दिल की कैनवास में
कैसे उतरते चले गए
राजेश’अरमान’
वाह