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मेरी कलम

मैनें लिखना छोड़ दिया है,
कलम को मैनें तोड़ दिया है
कलम रो-रो के पूछ रही है….
क्यूं ये ऐसा मोड़ लिया है,
क्या कहूं कलम से अब मैं..
तूने तो कुछ भी नहीं किया है
अंधी रेस में ,तू ना दौड़
करना ना बेमतलब होड़
सौन्दर्य को पीछे ना छोड़ना
काव्य-कला को कभी ना तोड़ना…

*****गीता*****

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