तू मेरे जिस्म मेरी जान जैसा है,
कभी दिल की जुबां तो खुदा की अज़ान जैसा है,
कभी हर प्रश्न का उत्तर तो कभी गणित के सवाल जैसा है,
तू मेरी आँखों का ख़्वाब तो कभी हकीकत का ताज जैसा है,
यूँ तो बनाई थी पहचान कभी अपनी,
आज मेरे ही अक्स की तू परछाईं जैसा है॥
राही (अंजाना)