मैं कुछ भूलता नहीं ,मुझे सब याद रहता है
अजी, अपनों से मिला गम, कहाँ भरता है
सुना है, वख्त हर ज़ख़्म का इलाज है
पर कभी-२ कम्बख्त वख्त भी कहाँ गुज़रता है
मैं अब बेख़ौफ़ गैरों पे भरोसा कर लेता हूँ
जिसने सहा हो अपनों का वार सीने पे , वो गैरों से कहाँ डरता है
बुरी आदत है मुझमें खुद से बदला लेने की
जब आती है अपनों की बात,तो खुद का ख्याल कहाँ रहता है
मैं कुछ भूलता नहीं ,मुझे सब याद रहता है….
अर्चना की रचना “सिर्फ लफ्ज़ नहीं एहसास”