हिन्द भाषाओं का सागर है l
मैं हिन्दी उसमें से एक हूँ , उद्भव मेरी संस्कृत से है l
हिन्द की सारी भाषाओं में भाईचारा था l
अंग्रेजी ने हमें स्वार्थ के लिए बांटा था l
मेरे संस्कार ने आजादी की चिंगारी डाला था l
फिर क्या था मैं इतिहास रचने निकल पड़ा था l
हिंद की कड़ी बनी, शंखनाद किया आजादी का l
मैंने जुल्मों सितम सहा, पर अडिग रहा l
आजादी का मंत्र हिंद के जनमानस में फूंका l
ऐसे मैंने आजादी का इतिहास रचा l
राष्ट्रभाषा का मुझे सम्मान मिला l
मैंने ही संविधान रचा,फिर भी कुछ ने मुझे ठुकराया l
अंग्रेजी ने अहंकार रूपी बीज जो बोया था l
मैंने हर भाषा को अपनाया, समानता का अधिकार दिया l
मैंने ही भेदभाव की जंजीरे तोड़ा, पर मुझे ही धर्म से तोला गया l
वर्षों से आस लगाए बैठा कभी तो मुझे अपनाओगे l
सारे बैर भुला राष्ट्रहित के लिए गले लगाओगे l
Rajiv Mahali