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मौत घूम रही है

कल फिर महफिलें सजेगी
हम भीड़ के हिस्से होंगे ।
खुद को कैद कर लो आशियाने में
वरना हम ना होंगे सिर्फ हमारे किस्से से होंगे ।
हमसे भी मजबूत देश आज असहाय है
कोई नजर नहीं आता दर्द लेने वाला
खौफ पहचान लो कुछ दिन ही तो हैं
वरना कल कोई नहीं होगा कफन देने वाला ।
हर गली हर मोड़ पर अदृश्य हो
मौत टहलने निकली है दर से
प्यार है अगर अपनों से
भूलकर भी ना निकलना घर से ।
प्रशासन की अपील आज भी
कुछ बेदर्द मानने को तैयार नहीं
वह हिंदुस्तानी हो सकते नहीं
जिन्हें अपने देश से प्यार नहीं ।
कर बद्ध निवेदन करता कोई
हम सब की खातिर बारंबार
कुछ तो फर्ज निभाओ तुम भी
मन आंखों से देखो अपना सा लगता संसार ।
घृणित कर्म के भागीदार
क्यों बनते हो जीवन में
ईश्वर अल्लाह देख रहा है
रुक जाओ अब आंगन में ।
हर अपने बेगाने को
बिना मजहब के चूम रही है
सड़कों पर सन्नाटा है
केवल मौत ही घूम रही है।
वीरेंद्र

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