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यादों का सृजन

मेरी यादों के लम्हे
चुन-चुन कर
सृजन मत करो
जिंदा लाश हूं मैं
मेरे अर्थहीन शरीर से
लगन मत करो
बेनूर हो जाएंगी
यह निगाहें
जो अभी चमकती है
भूल जाओ मुझे
खुद को इस कदर
मगन मत करो
तुम्हारा रूप तुम्हारा रंग
खुदा की अमानत है
इसे मेरे लिए दफन मत करो
उम्र भर तड़पोगे
मेरी यादों का सृजन करके
ऐसा जुल्म खुद से
मेरे सजन मत करो।
वीरेंद्र

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