ये गुनगुनाहट कहाँ हुई है
जो लेखनी ने बयान की है,
जो ध्वनि सुनी थी कभी मुहोब्बत की
आज फिर से सुनाई दी है।
निगाहों से मिलने को निगाहें
पलक झपकते मिला ही दी हैं।
सुहाना मौसम सुहाने पल-क्षण,
ये आहटें सी सुनाई दी हैं।
कभी हैं खट्टे फलों सी खुशबू
कभी वे लगती मिठाई सी हैं।
जो कह रहे हैं वो कुछ नहीं है
असल की बातें छुपाई सी हैं।
बयां न कर पाये थे मुहब्बत
मगर जिगर में सजाई सी हैं।