रुबाई

जुस्तजू जिसकी थी वो मिला ही नहीं

अब ख़ुदा से भी कोई गिला ही नहीं

दर्द के नूर से रूह रौशन रहे

इसलिए ज़ख्म दिल का सिला ही नहीं

कविता सिंह

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