वो मिस्त्री के साथ
काम करने वाला मजदूर,
कहना मानने को है मजबूर,
ईंट लपका दे,
मसाला फेंट दे,
थोड़ा गीला बना,
थोड़ा सख्त बना,
चल टेक लेकर आ,
सरिया मोड़,
टूटी हुई बल्ली को जोड़,
इधर आ उधर छोड़
ये टेड़ा है इसे तोड़।
ईंट की हर मजबूती
जानता है वह
सीमेंट के सैट होने का
वक्त समझता वह,
कभी जुड़ता है
कभी बिखरता है वह।
रोड़ी-रेत-सीमेंट का अनुपात,
जानता है वह,
ठोस बनने से जुड़ी
हर बात जानता है वह,
लेकिन बन नहीं पता
पेट की खातिर हर बात
मानता है वह।
सीमेंट से सने हाथ
पसीने से भीगा तन
कर्मठ सा व्यक्तित्व
कोमल सा मन।
लंच के समय
पानी पी लेता है,
सुबह के आधे पेट नाश्ते से
दिनभर जी लेता है।
मिस्त्री का अस्त्र है वह
इमारत बनाने का शस्त्र है वह।
मेहनत की पहचान है वह
एक कर्मठ इंसान वह।