Site icon Saavan

लिखते लिखते नीर बहे,,

कविता इक खूब नहाती दिखी,
कुछ मधुर, पंक्ति गाती दिखी ,
“छटा घन घोर ,मन बड़ा हर्षाया ,
यूं तो कविता में कागज में ही रही,
लिखे जब तुमने प्रेम के दो बोल,
आंखों से बड़ी नीर बहे,
बहते नीरों से आभास हुआ सावन जैसा,
सच ही है, एक कवि का मन,
कितना पावन होता है,,

आशयाने में फिर से तरावट आयी,
सावन की कुछ इक बूंदों से,
मन गंगा में बाढ़ आयी,,
और इस बाढ़ से धूल पाया,
कुछ जहरिले लोगों से विवादों का मैल,, ।।
कविता ✍️🌻💐🌺❤

Exit mobile version