वही सागर का तट
बालुकामय सतह।
जहाँ आनन्द मनाया
कुछ इस तरह।।
खाया -खेला
नाचा-गया।
गीले बालुका पर
अंगूठा घुमाया।
कुछ इस तरह।।
अंकित हुआ
बीस सौ बीस।
कितने दुखो के
भरे हैं टीश।।
सागर के लहरों ने
मिटा दिया वो अंकन।
पर दिल में एक
अधूरी यादों का है कंपन।।
शायद लिखा हुआ होगा
अब तक ज्यों का त्यों।
चल पड़े आज फिर
उसी ओर आखिर क्यों।।
शायद कुछ खोजने
और करने मन को हल्का।
वही अधूरी यादे
अंकित बीस बीस हल्का।।
समझ न पाया क्या था
हकीकत या फिर मन का टीश।
होकर आदत के वशीभूत
लिख डला बीस सौ एकीश।
ठीक उसी तरह
जैसे पृष्ठ पलट रहा हो कैलेंडर का।
‘विनयचंद ‘ ने भी लिख डाला
अपने मन के अन्दर का।।