भवन बनाए आलीशान,
फ़िर भी उसके रहने को
नहीं है उसका एक मकान।
झोपड़पट्टी में रहने को मजबूर है
हाँ, वह एक मज़दूर है।
मेहनत करता है दिन रात,
फ़िर भी खाली उसके हाथ।
रूखी- सूखी खाकर वह तो,
रोज काम पर जाता है।
किसी और का सदन बनाता,
निज घर से वह दूर है,
हाँ, वह एक मज़दूर है।
सर्दी गर्मी या बरसात,
चलते रहते उसके हाथ।
जीवन उसका बहुत कठिन है,
कहता है किस्मत उसकी क्रूर है।
हाँ, वह एक मज़दूर है।।
_____✍️गीता