जाग हे पार्थ जाग तू,
दे काल को अब मात तू,
काल के कपाल पर अमिट रेखाएं खींच,
अब तू काल समर जीत।
स्वयं के सम्मान हेतु ,
विश्व के कल्याण हेतु ,
अपने अंदर के ज्वाल पुष्प को तू सींच,
अब तो दिव्य समर जीत ,
अब तो विश्व समर जीत ।।
हो रही हूंकार है ,
उठ रही तलवार है,
गांडीव के बाण से ,
विश्व के इतिहास में ,
गाथा नवीन लिख।
उड़ उड़ान बाज की ,
हुंकार हो वनराज की,
हर संकट में बने कठिनाई तेरी मीत,
अब तू धर्म समर जीत।
अब तो विश्व समर जीत।।