मैं थककर चूर थी
जा बिस्तर पर लेटी थी
साँसें तेज थीं
बदन में अकड़न थी
आँखें अधखुली थीं
शायद नींद थी
कुछ पुरानी-सी यादें
कर रही बेचैन थी
वो बहुत देर से देख रहा था
ना हिल रहा था
ना डुल रहा था
अपनी जुगनू जैसी आँखों से
एकटक मुझको घूर रहा था
भाभी से पूँछा मैंने ये
असली है या नकली है
जरा इसे छूकर देखो
भाभी बोलीं तू पगली है
यह तो बिल्कुल असली है
शायद तेरा पूर्वजन्म का आशिक है
या प्रिय का संदेशा लेकर आया है
या फिर कोई मजनू है
जो वेश बदलकर आया है
यह सुनकर वह भाग गया
जा छुपा पर्दे के पीछे
मुझको उंगली में काटा
मैं जब थी अँखियां मीचे
वह कौन था बस एक “चूहा” था !!