वो गोरी भी ना थी,
ज्यादा सुंदर भी ना थी,
ना देती थी प्रेम कभी,
फ़िर भी वो योग्य बहुत थी
कदम से कदम मिलाती थी
वो साथ मेरे आती जाती थी
मैं चाहता तो रुकती थी
मैं चाहता तो चलती थी
मंदिर में आने से करती थी इन्कार
पर बाहर मेरा करती थी इन्तजार
वो………………………………………..
जैसी भी थी, चप्पल थी मेरी……
ना जाने कौन उठा कर ले गया ।