वज़ूद अपना ज़माने

वज़ूद अपना ज़माने से जुदा रख
अपने अरमानों को गुमशुदा रख
परिंदे के वास्ते अर्श की सरहदें कहाँ
अपने अंदर कोई दोस्त कोई ख़ुदा रख
राजेश’अरमान’

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