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शिशु सुधार की चाह

शिशु सुधार की चाह में रहते हर जन
खुद चाहे रहा बिकर्षित उनका जीवन
ब्यर्थ चिंतित हो उल्झाता जन निज मन
धरा अवतरण हेतु सबका अपना कारण

स्वभाव अलग हो सबका यह है संभव
प्यास हरता सबका पर वही शीतल जल
प्यार बिना सूना है पर सबका मधुबन
प्यार‌ से ही बनता है सरल हर संसाधन।।।।

संतान से चाह है मात-पिता की भूल
मांग बन जाती नन्हीं सी ह्रदय की शूल
अम्बर का परिचय सच उन्हें कराना है
क्षितिज तक उन्हें किंतु स्वयं ही जाना है

नहीं भूख से मरता कभी कोई पशु पक्षी
संरक्षा पूर्ण जगत है नहीं कोई नरभक्षी
प्रार्थना के लिए द्वार प्रभुजी का चुनना है
सुधार हेतु वरदान वहीं से सदा मिलना है

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