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सच्ची मोहब्बत ही, ताजमहल बनवाती है

कविता : सच्ची मोहब्बत ही, ताजमहल बनवाती है
जो खो गया है मेरी जिंदगी में आकर
उस पर गजल लिखने के दिन आ गए हैं
दिल दिमाग का हुआ है बुरा हाल
अब तो रात भर जागने के दिन आ गए हैं
प्यार की लहरें जब से दिल में उठ गई
सजने संवरने के दिन आ गए हैं
मोहब्बत ने वो एहसास जगाया है दिल में
अब तो तकदीर पलटने के दिन आ गए हैं
सच्ची मोहब्बत वो मझधार है
संग इसके तैरने के दिन आ गए हैं
वो ही करना पड़ा जो चाहा न दिल ने कभी
इंतज़ार करने के दिन आ गए हैं
अब न कुछ खोने का गम है न पाने की ख़ुशी
तुम्हे याद करने के दिन आ गए हैं
याद करके उनको ,सांस दोगुनी हुई
प्यार के शुरुर के दिन आ गए हैं
याद करके तुमको भीड़ में पाता हूँ अकेला
सांसों की तपिश में पिघलने के दिन आ गए हैं
ये दूरियाँ हम दोनों के दरमियान कैसी
अब तो ख्वाब सजाने के दिन आ गए हैं
मोहब्बत की दुनिया निःस्वार्थ की दुनिया है
धोखा ,मौकापरस्ती की कोई जगह नहीं है
अगर ये नहीं कर सकते ,तो मोहब्बत न करना
क्योंकि सच्चे जज़्बातों की ये नगरी है
सच्ची मोहब्बत ही ताजमहल बनवाती है
नहीं तो सुशांत रिया सा हस्र करवाती है
सच्ची मोहब्बत को जो प्रोफेशन बनाते हैं
अंत में वो सब कुछ गंवाते हैं …..

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