बीतता जा रहा है निरन्तर
वक्त रुकता कहाँ है किसी को
दिन उगा, दोपहर- रात फिर
चक्र है यह घुमाता सभी को।
चक्र चलता रहा है अभी तक
पौध उगती रही और मिटती रही
आने जाने की निर्मम कथा
कुदरत भी लिखती रही।
सोचता रह गया एक मानव
लक्ष्य क्या था मेरी जिंदगी का
क्यों उगा, क्यों मिटा, क्यों खपा
सत्य क्या था मेरी जिंदगी का।