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सद न छोड़ कहती है

विचार ही तो हैं जो
व्यक्तित्व लिखते हैं मेरा,
सदविचार उत्साहित कर
बाग सींचते हैं मेरा।
सकारात्मकता मुझे
आशान्वित कर,
चाह को मेरी
पुष्पित कर पल्वित कर,
एक लय देती है,
प्रेममय करती है।
मगर कभी कभी
नकारात्मकता
तपन दे कर
मुरझा सी देती है,
राही की राह
अवरुद्ध करती है।
ऐसे समय में
हिम्मत से काम लेकर
छोड़ कर वो तम की राह
सद की तरफ बढ़ना
जरूरी हो जाता है,
नीति यही कहती है,
सद न छोड़ कहती है।

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