समझते सब है

समझते  सब  है पर मानता कोई नहीं
    पहचान सब से है पर जानता कोई नहीं
  यूँ तो पड़ा हूँ खुली किताब की तरह
     पढ़े लिखे  सब है पर बांचता कोई नहीं

                          राजेश’अरमान’

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