बेटी और बेटे में इक फर्क समझ में आया
ससुराल में रहकर भी मैके का साथ निभाया।
दूर रहकर भी मनसे ममत्व नहीं मिट पाया
पास रहकर भी यह पुत्र समझ नहीं पाया।
पुत्र को डर यह कैसा,पत्नी को दोष लगाया
कर्म पथ से पीछे हट, कर्त्तव्य से नज़र चुराया।
मां का राजा बेटा, जब रानी घर ले आया
दो पाटे में बंटकर, सामंजस्य बना न पाया।
गृहस्थी बसाने चला प्रवासी बनकर
मां बाबा पे, कैसे मिथ्या दोष मढ़कर
उनकी कमज़ोरी का लाठी बन नहीं पाया
बेटी और बेटे में इक फर्क समझ में आया।
कोरोना का कहर लौटाकर
ले आया गांव भगाकर
बन्दिशों से भागे थे बचकर
पर लौटे हैं क्या अपने बनकर
कशमकश का दौङ उभरकर आया
बेटी और बेटे में इक फर्क समझ में आया।