खुशियों की डंका बजा दिया।
इनकी तो लंका ढहा दिया।।
हो सकते हैं अपने भी,
अब सेब के बागान।
डल झील में तैरता,
होगा अपना भी मकान।
दिलों से शंका हटा दिया।
खुशियों की डंका बजा दिया।
इनकी तो लंका ढहा दिया।।
काश्मीर में भी अब तिरंगा,
शान से लहराने लगा।
धरती का स्वर्ग यकिनन,
अब स्वर्ग कहलाने लगा।
गौरव का झोंका बहा दिया।
खुशियों की डंका बजा दिया।
इनकी तो लंका ढहा दिया।।
बहुत भोग लिए अब तक,
तुम दोहरी नागरिकता।
अनुभव करो अब केवल,
और केवल भारतीयता।
जेहन से आशंका हटा दिया।
खुशियों की डंका बजा दिया।
इनकी तो लंका ढहा दिया।।
देवेश साखरे ‘देव’