एक विरोधाभास रहा है
हमेशा से हमारी कल्पनाओं
और वास्तविकता के बीच..!!
जहाँ कल्पनाएं सुख की मीठी नदी है,
वहीं वास्तविकता दुःख का खारा सागर..!!
मगर हम हमेशा
वास्तविकता की अवहेलना कर
चुनते हैं कल्पनाओं की नदी में गोते लगाना!!
ये जानते हुए भी कि
अनेकों नदियाँ अपना अस्तित्व खोकर
भी मिटा नहीं सकती सागर के खारेपन को..!!
©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’