सूखी स्याही
~सूखी स्याही~
केवल शब्दों का
झुण्ड है,
मेरी कविताऐं
लोगों के लिए,
सचिन*
पर जब हम
बैठते है पढ़ने
को ,
तो
यादों में
बदल जाती है,
हर बार
वही लम्हें,
नजरों के
सामने आ,
गलतियाँ मेरी,
मुझको ही
बता जाते है,
सोचा कि मैं
भी रो लू,
थोड़ा सा गम
करूं कम,
मेरे सूखे आँशू
सदा,
छुप-छुप के
निकल जाते,
याद आता
है जब,
खुद का
अतीत मुझको,
मेरे गम बन
जाते कविता,
सूखे आँशू
स्याही में
बदल जाते!
~सचिन~
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