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सड़क का सरोकार

।। सड़क का सरोकार ।।
: अनुपम त्रिपाठी

सड़कें : मीलों—की—परिधि—में बिछी होती हैं ।
पगडंडियां : उसी परिधि के आसपास छुपी होती हैं ॥

सड़कें : रफ्तार का प्रतीक हैं ।
पगडंडियां : जीवन का गीत है ॥
लोग ! सड़कों पर समानान्तर गुज़र जाते हैं ।
‘‘न हैलो… न हाय !’’ पलभर में नज़र भी न आते हैं ॥

पगडंडियां : बातें करती हैं , चलती——-मचलती हैं ।
‘‘ पाँव–लागी, राम–राम भैया’’ की देव-ध्वनि सुनती हैं ॥

सड़कों पर, कोई किसी का समकालीन नहीं होता ।
पगडंडियों का पाँवों से है, सनातन—-समझौता ॥
सड़क का सरोकार…………. शाश्वत् है ।
पगडंडी : अस्तित्व के प्रति आश्वस्त है ॥

सड़कों पर चलने वाला, पगडंडी से कतराता है ।
पगडंडी पर चलकर ही कोई, सड़क पर आता है ॥

सड़क ; सुधार के प्रति उदासीन होती है ।
पगडंडी : प्रतिदिन नूतन है–नवीन होती है ॥
सड़कों को रौंदकर सभ्यता गुजरती है ।
संस्कृति : पगडंडी के आधार पर संवरती है ॥

सड़क : सुगम-संगीत सा छू भर पाती है ।
पगडंडी : शास्त्रीय-राग-सा भिगो जाती है ॥

खास सड़कें , आम आदमी के लिए बंद होती हैं ।
आम पगडंडियां—खास लोगों की बाट जोहती हैं ॥
चंद सड़कों पर “मौ…त का खौ…फ़” नाचता है ।
अमूमन, हर पगडंडी पर, जीवन-राग आल्हा बाँचता है ॥

सड़क : सुरक्षा के प्रति सशंकित् रहती है ।
पगडंडी से प्रकृति की जीवनधारा बहती है ॥

सड़क के तमाशे , न बाजे—-न ताशे ।
पगडंडी की पगध्वनि ही, गीत सजा दे ॥
सड़कों में विकास की संवैधानिक सत्ता छुपी होती है ।
सड़कों का सौंदर्यीकरण, पगडंडी बहुत भुगत चुकी है ॥

अब ; सड़कों को सर पर तो न बिठाओ …….. !
पगडंडी : पिछड़ न जाए, दोस्त ! जरा हाथ बढ़ाओ !!
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