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हर एक की सूनी नज़र है

सुनने को कर्ण यह तरस गये
कहां अब कोई अच्छी ख़बर है
वेवसी का आलम है यह कैसा
पल यह कैसा,हर एक की सूनी नज़र है।।
सुनने को अंन्तर्मन यह‌ तरस रहा है
कहीं से उठकर लहर वो आए
मन के डर को दूर बहा के
किसी समंदर में छोङ लाए
कह दे अब ना किसी का भय है
अब ना कहीं संक्रमण का डर है
पल यह कैसा,हर एक की सूनी नज़र है।।
संक्रमण का यह खौंफ कैसा
मनुज पङा लावारिस शव जैसा
धरा पर ढ़ेर मृतकों का लगा है ऐसे
वारूद के अंबार पर नर खङा हो जैसे
मरी संवेदना मन की, करूणा की झलक नहीं है
कैसे कहूं – इंसानियत अब भी अजर-अमर है
पल यह कैसा, हर एक की सूनी नज़र है।।
है बेखबर या, डर से ‌ख़ामोश, यह शहर है
सहम-सहम कर जी रहे, हवाओं में फैलीं ज़हर है
करनी हमारी, कैसे कहें कुदरत का कहर है
आकांक्षाओं की पूर्ति, आहूति जिसमें जीवन की डगर है
मानवता पिसती, बिखरते रिश्ते, फिसलती हाथों से सहर है
पल यह कैसा, हर एक की सूनी नज़र है।।

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