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हाय मैं सड़क बेचारी

मैं सड़क बेचारी
ज्यों अबला नारी।
पग पग दलित
परम दुखियारी।। हाय मैं सड़क बेचारी
काट दिया कोई कहीं पर
और बहा दिया पानी घर का।
भोजन के दोनें और छिलके
सब फेंक रहे मेरे ऊपर आ।।
चले बटोही नाक बन्द कर
थूके और देकर कुछ गारी।। हाय मैं सड़क बेचारी……
गंदे लोग गंदी प्रशासन
कमर टूट गई जिसके कारण।।
आखिर कहाँ गुहार लगाऊँ
मैं नहीं जाती दफ्तर सरकारी।। हाय मैं सड़क बेचारी…
जीर्णोद्धार होगा पुनर्निर्माण होगा
हो जाएगी अब मेरी काया पलट।
योजनाएं बनी कागज पर
और हो गई मेरी कुछ काटम- कट।।
निर्माणाधीन हीं बीत गए
कुछ मास वर्ष दो – चारी।। हाय मैं सड़क बेचारी….
ठेकेदार अभियन्ता आफिसर
दे लेके एक राग अलापे।
हमने तो कर निर्माण दिया था
टूट गए सब बाढ़ के ढाहे।।
‘विनयचंद ‘ अब मान भी जाओ
है फरमान सरकारी।। हाय मैं सड़क बेचारी…..

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