Site icon Saavan

है डर मुझे आज भी।

है डर मुझे आज भी,
उन सुनसान गलियों से।
वह सन्नाटे में चिल्लाते ,
शोर की गहराइयों से।
वह डरा देती है, मुझे।
मैं जब उस ओर गुजरती हूं।
याद आता है, मुझे उसका चेहरा।
बेचारी कितनी मासूम थी वो।
गुम हो गई, उस अंधेरे में।
शोर सुना नहीं,
बस गहराइयां माप लेती हूं,
वो डर वो खौफ भाप लेती हूं।
है डर मुझे आज भी,
उन सुनसान सी गलियों से।

Exit mobile version