Site icon Saavan

ग़ज़ल। सभी को मौत के डर ने ही..

आदाब

सभी को मौत के डर ने ही ज़िंदा रक्खा है
ख़ुदाया फिर भी ये इंसाँ इसी से डरता है

हमारी साँस भी चलती उसी की मर्ज़ी से ही
जहाँ में पत्ता भी उसकी रज़ा से हिलता है

हमेशा आस का दीपक जला के रखना तुम
अँधेरे रास्ते है, तू सफ़र पे निकला है

वो सारे चल पड़े थे, तिश्नगी लिये अपनी
किसी ने कह दिया सहरा में कोई दरिया है

ज़मी पे अजनबी भी अजनबी नहीं होता
बुलंदी पे जो है अक्सर अकेला होता है

ये ज़िंदगी है, इसे नासमझ सा बन के जी
जहाँ में कौन है जो ज़िंदगी को समझा है

रहे न एक भी शिकवा न ‘आरज़ू’ कोई
बता दे ज़िंदगी को ये कि ज़िंदगी क्या है

आरज़ू

Exit mobile version