Site icon Saavan

अंतहीन मृगतृष्णा

सूरज के उग्र रूप
की तपिश में
मैं जल गई
नदी में उतरी
तो भंवर में
बह गई
भवर ने फेंका
रेत के ढेर में
खड़े होकर देखा
रेत ही रेत थी
चारों ओर
दिखाई दी
तो सिर्फ मृगतृष्णा
उस मरीचिका में
फंस गई
एक स्वर्ण हिरण
को पाने के
एहसास तले।

Exit mobile version