अंतहीन मृगतृष्णा
सूरज के उग्र रूप
की तपिश में
मैं जल गई
नदी में उतरी
तो भंवर में
बह गई
भवर ने फेंका
रेत के ढेर में
खड़े होकर देखा
रेत ही रेत थी
चारों ओर
दिखाई दी
तो सिर्फ मृगतृष्णा
उस मरीचिका में
फंस गई
एक स्वर्ण हिरण
को पाने के
एहसास तले।
Nice
सुन्दर
सुन्दर
Nice
सुन्दर